तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

रविवार, 23 जून 2013

हे केदार नाथ

हे केदार नाथ ,
तुम कैसे भगवान ?
हम तुमसे मिलने आए थे ,
तुम्हारा आशीर्वाद लेने |
आस्था के सागर मे डूब कर
 तुम्हारा  प्रसाद लेने |
पर यह क्या किया तुमने ?
क्या बिगाड़ा था हम सब ने ?
यदि आप विनाश के स्वामी हैं |
पूर्ण अंतर्यामी हैं |
पापियों को छोड़ कर
 अपने ही भक्तों का विनाश कर डाला !
महिलायें पुरुषों और अबोध बच्चों का
 संहार कर डाला !
निर्दोषों की लाशों से भर
  लिया अपना आँगन |
आसुओं के शैलाब से डूब गया वतन |
आश्चर्य .....महान आश्चर्य !
तुम मौन होकर अपने भक्तों को ,
मरते हुये देखते रहे ?
और वे तुम्हें आखिरी सांस तक पुकारते रहे |
कहाँ चली गई  तुम्हारी दया दृष्टि ?
कहाँ चली गई  तुम्हारी अनंत शक्ति ?
भक्त के साथ विश्वाश घात हुआ है |
शायद तुमसे बहुत बड़ा पाप हुआ है |
एक ऐसा पाप ,..।
जिसे तुम अपने आप को
 शायद ही माफ कर सकोगे |
ख़ुद को  कैसे भोला कह सकोगे ?
भक्तों को नहीं बचा सकते थे
शक्ति का आभास नहीं करा सकते थे |
भक्तों से पहले तुम्हें बह जाना चाहिए था |
तुम्हारा भी मंदिर
 टुकड़ों मे बिखर जाना चाहिए था |
पर ये क्या आज के बाबाओं की तरह ,
आप भी हो गए ?
चेलों के पैसों से प्रमाद मे डूब गए ?
तुम्हारी इस शक्ति की दयनीय अवस्था पर |
कौन करेगा अब विश्वास तुम पर ?
तुम से ज्यादा भोला तो ,
आज का इंसान है |
तुमसे शक्ति शाली तो उसका ईमान है |
वह आज भी ....।
तुम्हें व तुम्हारे मंदिर के बचने पर ,
गर्वान्वित है |
तुम्हारी महिमा पर आज भी आशान्वित है |
पर याद रखो !
प्रकृति के सिद्धान्त मे यदि कर्मफल शाश्वत है |
तो तुम्हारे लिए भी दंड यथावत है |
आडंबर पाखंड का  दंड भोगना पड़ता है |
मनुष्य क्या भगवान को भी डूबना पड़ता है ||

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