तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

शनिवार, 31 अगस्त 2013

वर्तमान परिवेश के चार छंद

भाषा  मौन  होती  है  तो  राष्ट्र  मूक  बनता  है ,ऐसी  तश्वीर को  ना देश  में  सजाइए ।
शब्द मौन होता है तो अभिव्यक्ति टूटती है ,भारतीय स्वाभिमान  को न यूँ  मिटाइए ॥
जननी  है  मातृ  भूमि  जननी  है  मातृ भाषा ,स्नेह  मातृ  ममता कभी ना विसराइये।
भाषा की मसाल  संग संकलप ज्योति ले के ,विश्व की बसुन्धरा में हिंदी को जगाइए ॥


सीता  का  हरण  गर  रावण  ना  करता  तो  लंका स्वर्ण नगरी भी ख़ाक नही बनती ।
द्रौपदी  के  चीर  को  दुशासन  ना  खीचता  तो  युद्ध  महाभारत कथाएं नहीं मिलती ॥
दुराचारी  बनके  जो  छेड़ते हैं नारियों को , नारी की  यथाएं  उन्हें  माफ़  नहीं  करतीं ।
महापाप  करते  जो  नारियों  की  भावना से ,ऐसे  घर कभी  दिया बाती नहीं जलती॥


भ्रष्टता   की  लपटों   से  डालर  उछल  रहा , रूपये   की  मार  से  गरीबी   तडपाती   है ।
दाल सब्जी प्याज भी ना थालियों में दिख रही ,तक़दीर भारत की भूख लिख जाती है॥
अर्थ  की  गुलामी  के  कगार पे देश आज , महगाई  मौत  की  कहानी  लिख  जाती है ।
कैसी है विडम्बना ये सोने की चिरइया आज ,पिजरे में आसुओं की बूद पिए जाती है ॥


शीष  शरहद  पर  कटते  शहीद  के  हैं , तेरी  क्रूरता   का  तो  जबाब   मिल   जायेगा ।
भटकल  भटका  सका  ना  देशवासियों  को  जहरीले   टुंडा का हिसाब मिल जायेगा ॥
धैर्य  का  भी  बांध  गर  टूटा  देशवासियों  का ,राष्ट्र तेरा पल में ही खाक  बन जायेगा ।
धर्म से  भी  ज्यादा  राष्ट्र पूजते हैं देशवासी, तेरा ये आतंक  तुझे  खुद  को ही खायेगा ॥   


                                                                                  नवीन 

शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

हे कृष्ण

हे कृष्ण ,
कब होगा आपका जन्म ?
विकसित हो चुका  है अधर्म।
हर ओर त्राहिमाम ……  ,
भ्रष्टाचार बे लगाम ,
भक्तों की थाली से दाल, सब्जी, प्याज
सब कुछ गायब हो चुका है।
रुपये का अवमूल्यन ,
अब डालर उछल चुका है।
राजनीति का स्तर रसातल में है।
नरभक्षी मजहबी वायरस अब धरातल में है।
अब तो चीरहरण आम हो गया है ,
अभिशप्त नारी जीवन संग्राम बन गया है।
कहाँ हो सुदर्शन चक्रधारी ?
रोज पुकारती है तुम्हें
भारत की नारी।
गरीबी से व्याकुल हो चुके है देश के सुदामा।
अनेक हो चुके हैं तुम्हारे कंस मामा।
क्या कहूँ !
सब कुछ जानते हो।
कण कण पहचानते हो।
अब बहुत हो चुका  …।
प्रकट हो जाओ !
मानवता ,संस्कृति ,सभ्यता को बचाओ।
हे कृष्ण
फिर से कोई महाभारत ना हो जाये ,
आओ भारत की स्मिता को बचाओ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

ये तिरंगा झुके ना कभी देश का , ज्ञान का दीप घर मे जला लीजिये

डूब  जाये   ना  ईमान   का  हौसला ,भ्रष्टता   की   लहर से बचा  लीजिये |
खो ना जाए कहीं ये अमन की हवा ,अब  झरोखों से  परदे  हटा  लीजिये ||

मौत सस्ती है  दंगों  के बाजार मे , अर्थियाँ   उठ  रहीं  उनके   व्यापार  में |
मंदिरों  मे वही  मस्जिदों मे वही , देश   के  राग  मे  स्वर  मिला लीजिये ||

कट  रहे  सर  शहीदों  के शरहद पे अब ,जागना है जरूरी तो जागोगे कब |
एक हुंकार भर लो वतन के लिए ,कुछ सबक आज उनको सिखा दीजिये ||

आज  गंगा ने आँसू  को छलका दिया ,राह में
उसके तुमने  जहर  भर दिया |
आ ना जाए यहाँ  जलजला फिर कहीं ,उसकी पावन छटा को बढ़ा दीजिये ||

आज इंसानियत की नजर खो गई ,अब तो हैवानियत  की  निशा  छा गई |

आत्मा  दामिनी  की  सिहर  सी गई ,फिर  ना आए  घड़ी वो दुआ कीजिये |। 

जो जलाता था दीपक सदा ज्ञान का ,डस गया है तिमिर उसको अज्ञान का |
ये   तिरंगा  झुके  ना कभी देश का , ज्ञान  का  दीप  घर  मे  जला लीजिये ||


                                                                       नवीन मणि त्रिपाठी