तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

दर्द


               

इंशा की  बद नियत से ये   दिल बदल गया है |
अबला कि आसुओं से, साहिल  बदल गया  है ||
बेख़ौफ़   दरिंदों   से  बेबस  सी  दिख  रही  है |
रिस्तों कि शकल लेकर कातिल बदल गया है ||

थी  बाप  कि दुलारी ,वो  माँ  की लाडली थी |
सुन्दर  सुशील  बेटी , तहजीब  में  पली  थी ||
शातिर व मनचलों की  जब दाल गल न पाई |
तेजाब कि लपट में तिल तिल के वो जली थी ||

उलझी  व्यथा  न  सुलझी ,फूलों की दास्ताँ में |
कलियाँ भी खिल न पाईं इस दौरे गुलिस्तां में ||
जब  शाख  पे  इठला  के  लहराई  कली कोई |
भौरों   ने  कुतर  डाली ,बेदर्द  सी  फिजां   में ||

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

ईमानदार को भी अब नकाब चाहिए

इस  मुफलिसी  के दौर का, जबाब चाहिए।
जुर्मो सितम का अब हमें, हिसाब चाहिए॥

बे  खौफ  हो  गया  है यहाँ  आम आदमी ।

शायद   सियासतों   में  इंकलाब  चाहिए ॥

इंसान   मर   रहा  यहाँ  रोटी   के  वास्ते ।
सरकार   है  उनकी   उन्हें  शराब  चाहिए ॥

 
ईमान  डर  गया  है  ज़माने से इस कदर ।
ईमानदार  को   भी  अब  नकाब  चाहिए ॥ 


काँटों के बिस्तरों पे अब सोने लगे हैं लोग ।
नेता  है,  उसे  बिस्तर  ए  गुलाब चाहिए ॥

हिन्दू  या  मुसलमा के खैर ख्वाह नहीं वो ।

उनको  यहाँ  अमन  बहुत  ख़राब  चाहिए ॥

क्यूँ  लोकपाल  से उन्हे दहशत हुई है आज।

कहते  हैं  लोग,  अब  उन्हें  जुलाब चाहिए॥

दंगो ने दी शिकस्त है  इंसानियत को आज ।
कुर्सी   का  बेहतरीन , उसे  ख्वाब  चाहिए ॥

वह  हुक्मरान  है,  उसे   दावत   कबूल  है ।
उसको   गरीब   खाने  से,  कबाब   चाहिए॥

हिन्दोस्ताँ   कि  लाज  बचाने  के लिए अब।
हर  शख्स  के  सीने  में, नयी आग चाहिए ॥
                              
           - नवीन मणि त्रिपाठी
             

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

महानिदेशक आयुध निर्माणी बोर्ड भारत सरकार के आगमन पर पढ़े गये कुछ मुक्तक व छंद

                                 मुक्तक         


यहाँ   उदगार    के   स्वर   में  ह्रदय    करता  है  स्पंदन |
बहुत  आभार  के  संग  में  है  मन  करता  तुम्हे   बंदन ||
आज   निःशब्द  हूँ  स्वागत  करुँ  किस  भाव  से  श्रीमन|
आगमन  पर  है शत शत आज निर्माणी में अभिनन्दन ||

आने   से    बहारें    आ    गयीं    हैं    आज    उपवन   में |
नजर  बहकी  है  फूलों  कि  फिजा  महकी  है  चन्दन में ||
दिलों  में  बस  गए  हैं  आप  अब  जाना  है  बा मुश्किल |
सुमन   श्रद्धा  के   अर्पित   हैं   आपके   कोटि   बंदन  में ||

मोहब्बत  की  निशानी  हो, यहाँ  के  हर  दिलों की  तुम |
रौशनी की    कहानी  हो , कार्य   के  मंजिलों  की   तुम ||
कि  जलते   दीप  बन   करके, बढ़ाया  मान भारत   का |
नाज  बन   के   दिखे  हो   अब  हमारे  हौसलों  के  तुम ||

तुम्हारे   हर   तबस्सुम   की   यहाँ   पर   याद   आएगी |
कमी   तेरी   यहाँ   हर   शख्स   को   इतना   सताएगी ||
तुम   हमसे   दूर   जाके   भी   ये   वादा   भूल  न जाना |
चले   आना   प्रेम   की   डोर   जब    तुमको   बुलाएगी ||

                                                           छंद

प्रेम   प्रबलता की से शब्द मौन होते नहीं आगमन आपका  प्रदीप  बन  जायेगा |
भावना  का  पुष्प  गुच्छ स्वागत समर्पण श्रद्धा का सुमन भी प्रदीप बन जायेगा ||
निर्माणी  कण कण उत्साह में विलीन ,जज्बा  भी जीत का  उम्मीद बन जायेगा |
आप जो पधारे आज निर्माणी द्वारे मेरे कोटि कोटि स्वागत में शीष झुक जाएगा ||

निर्माणी उन्नति  विकास को निहारती है एक दीप उन्नति का आज भी जलाइए |
लक्ष्य  उत्पादन  बुलंदियों  को पार करे हौसलों से  स्वाभिमान  देश  का  बढाइये ||
आयुध  प्रतीक  आज  सभा  में  विराज  रहे , संकल्प   शंखनाद  करके  दिखाइये |
उनकी  उम्मीद  में  भरोसे का भी पुष्प गूंथ ,स्वागत में आज एक माला पहनाइए ||