तीखी कलम से

मेरे बारे में

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जी हाँ मैं आयुध निर्माणी कानपुर रक्षा मंत्रालय में तकनीकी सेवार्थ कार्यरत हूँ| मूल रूप से मैं ग्राम पैकोलिया थाना, जनपद बस्ती उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ| मेरी पूजनीया माता जी श्रीमती शारदा त्रिपाठी और पूजनीय पिता जी श्री वेद मणि त्रिपाठी सरकारी प्रतिष्ठान में कार्यरत हैं| उनका पूर्ण स्नेह व आशीर्वाद मुझे प्राप्त है|मेरे परिवार में साहित्य सृजन का कार्य पीढ़ियों से होता आ रहा है| बाबा जी स्वर्गीय श्री रामदास त्रिपाठी छंद, दोहा, कवित्त के श्रेष्ठ रचनाकार रहे हैं| ९० वर्ष की अवस्था में भी उन्होंने कई परिष्कृत रचनाएँ समाज को प्रदान की हैं| चाचा जी श्री योगेन्द्र मणि त्रिपाठी एक ख्यातिप्राप्त रचनाकार हैं| उनके छंद गीत मुक्तक व लेख में भावनाओं की अद्भुद अंतरंगता का बोध होता है| पिता जी भी एक शिक्षक होने के साथ साथ चर्चित रचनाकार हैं| माता जी को भी एक कवित्री के रूप में देखता आ रहा हूँ| पूरा परिवार हिन्दी साहित्य से जुड़ा हुआ है|इसी परिवार का एक छोटा सा पौधा हूँ| व्यंग, मुक्तक, छंद, गीत-ग़ज़ल व कहानियां लिखता हूँ| कुछ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहता हूँ| कवि सम्मेलन के अतिरिक्त काव्य व सहित्यिक मंचों पर अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को आप तक पहँचाने का प्रयास करता रहा हूँ| आपके स्नेह, प्यार का प्रबल आकांक्षी हूँ| विश्वास है आपका प्यार मुझे अवश्य मिलेगा| -नवीन

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

दिल लगाने से क्यूँ वो ख़बरदार है

----***ग़ज़ल***----

कुछ   तिलस्मी   लगा,  ये  तेरा  प्यार  है।
बेवफा      कैसा  तेरा,   ये   इकरार   है ।।

रोटियों   में  थी   खुशबू   तेरे  हाथ  की ।
चाहतो  की  भी  कैसी   ये  दरकार   है ।।

ख्वाब  में  रोज  आती  हो  जाने  वफ़ा।
ख्वाहिशों  की  तू  महंगी  सी बाजार है।।

लिख दिया तुमने खत में सबक है मगर ।
क्या   करूँ   हुश्न  तेरा   गुनहगार   है ।।

अब  वफाओं  के  ढूढो  न  मोती  यहां ।
ये  मुहब्बत  बनी   आज   व्यापार   है।।

उस  नदी से भी अब  वास्ता  क्या  रखूँ ।
जो  बहा ले  गयी  मुझको  मझधार  है।।

जिनके  मीठे  बचन   दिल   चुराते   रहे ।
अब  जुबाँ  पर वहां  खार  ही  खार  है ।।

उसकी  फितरत बदलती  रही  रात  दिन ।
दिल   लगाने  से   क्यूँ  वो  खबरदार  है।।

         -नवीन

ग़ज़ल

उजड़ जाएगी  ये बस्ती ख़ाक हो जाएगा  कसबा ।
तेरी जुल्फे अदा करके गयी दिल में बहुत बलबा ।।

बड़ी शिद्दत से तुमने पढ़ लिया मेरी ग़ज़ल लेकिन ।
तेरी  खामोशियो  की  दास्ताँ  से  है  कहर बरपा ।।

तुम्हारी  चाहतों  का  दर्द है लिखती  कलम मेरी  ।
तुम्हारी  याद  में मैं रात भर हूँ किस तरह तड़पा । ।

शेर  मेरे  पढ़े  तुमने  तसल्ली  हो  गयी  दिल  को ।
मुहब्बत  हो  मेरी पहली  तुम्हारा ख़ास है रुतबा ।।

परायी  हुश्न  हो पर  दिल  चुराने का हुनर  तुझमे  ।
तेरी  कातिल निगाहों  ने किया छोटा  मेरा रकबा ।।

जो दावत  थी  तेरी  झूठी  उसे  सच  मानता हूँ मैं ।
मिलूंगा मैं  सनम  तुझको जहाँ पर है तेरा कुनबा ।।

बेरहम बादलों ने फिर चुरा लिया उसको

----***ग़ज़ल ***----

ख्वाहिशे  चाँद  ने  यूँ  ही  बुला  लिया हमको।
मेरी  नज़र  से  कोई  दूर  कर  लिया  तुमको।।

ईद   का   जश्न   मनाना  मेरी   मजबूरी   थी।
बड़ी  खामोशियों से फिर दबा लिया गम को।।

या  इलाही  तेरी  मगरूरियत  भी  जालिम  है ।
मेरे जख्मो का अफ़साना सुना लिया  उनको ।।

तेरी  पनाह   में  मुमकिन  थी  जिंदगी  अपनी।
दौरे  मुफ़लिस  में  थामैंने भुला लिया रब को ।।

यहाँ   इबादतों   पे , बददुआ  ही  हासिल   है ।
उसके सज़दे ने फिर हैरत में ला दिया सबको।।

मेरा  यकीन  भी  किस्मत का गुनहगार बना।
मेरी वजह से क्यों तुमने मिटा लिया खुदको।।

थी  तमन्ना  कि  मेरा  चाँद  निकल आएगा ।
बेरहम  बादलों  ने  फिर  चुरा लिया उसको ।।

       --नवीन मणि त्रिपाठी

ग़ज़ल

जवानी वक्त था  जालिम  तरस  जाते  थे  दीवाने ।
चाँद कह कर जले है रात दिन तुझ पे वो परवाने ।।

उम्र   पूरी  गुजारी  सिर्फ   तेरी   चाहतें  लिखकर ।
जेहन  में आज भी जिन्दा मिले जितने मुझे ताने ।।

शबाबो  की अदा  फिर जुल्फ लहराना बनी चर्चा ।
बेवफा  से  मेरी  नज़रें  लगी  थी  इश्क  फरमाने ।।

तौहीने  मुहब्बत का  खुदा ने  हक  दिया  तुझको ।
कातिलाना तस्सवुर में  लिखी तुम रोज अफ़साने ।।

हमारे  खत  को  न  पढ़ना फाड़कर  यूं जला देना।
जख्म भूला कहाँ मुझको लगी जब जुल्म को ढाने ।।

वक्त फिसला तेरी मुट्ठी से फिसली आशनाई सब ।
नहीं आते है अब  बादल तेरे आँगन  को बरसाने ।।

सनम  जब हुश्न ढल जाने  की  बारी आ गयी तेरी ।
फेर  कर  मुँह  गए  सारे  जो  तेरे  बिन  थे  बेगाने ।।

         - नवीन मणि त्रिपाठी

टुकड़े टुकड़े में यादगार

वस्ल  की  रात  से  पहले मुहब्बत  कत्ल होती है ।
हिज्र आने  से पहले  ही  नसीहत क्यूँ मचलती है ।।
मेरी दीवानगी  पर  फिर चली  शमशीर है उसकी ।
बहुत दर्दे सितम लेकर ये किस्मत रोज जलती है ।।

वस्ल = मिलन
हिज्र= जुदाई के पल
शमशीर=तलवार

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तुम्हारी शरबती आँखों से फिर उसने गुजारिश की ।
छलक  जाओ जरा ,ये तश्नगी हद  से  मिलाती  है।।
छोड़  कर आ  रहे  हैं मयकदे  को  रिन्द  ये  सारे ।
नशा  उतरा नहीं जिनको  नज़र तेरी  पिलाती  है ।।


बेवफाई  का  सबक   दे  गयी  बोतल   तेरी ।।
 नशा  ये   वक्त  की  पाबंदियों  में  दूर  हुआ ।
मेरे  साकी  ने  पिला  दी  जो निगाहों से मुझे ।
उम्र  भर  होश  ना  आया  बड़ा  सरूर हुआ।।
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बहुत  रोका  था   मैंने  बेअदब  से  हो  गयीं नज़रें ।
बगावत  कर  गयीं ज़ालिम  तेरे  दीदार की खातिर।।
जन्नते   हूर  से   बेहतर  अदा  ने   की  गिरफ्तारी।
सज़ा ए इश्क हो मुझको तेरा मुजरिम हुआ हाजिर।।

                       नवीन


मेरी  बेचैनियों  पर  कब  ,तरस  आएगी  ऐ हमदम ।
तुम्हारी इक झलक खातिर, है बेचीं जिंदगी अपनी ।।
छिपोगी कब तलक हमसे ,नजर आती नहीं क्यूँ तुम ।
दिल ने पहली मुहब्बत  को ,है भेजी बन्दगी अपनी ।।


ये रिश्ता तोड़ कर तुमको तसल्ली मिल गयी लेकिन ।
जला डाला है जिसका ख्वाब उसको मौत हासिल है।।
बड़ी  नाजो  नफासत  से  तेरी  पहलू   में आया  था ।
तेरी  ये  बेरुखी  सचमुच  बड़े  नफ़रत के काबिल है ।।
           -नवीन


जब तेरे  कूचे से होकर है चली पुरवा हवा ।
फिर तेरी खुशबू मुझे बेचैन कर जाने लगी।।
मैं सड़क से देखता हूँ जब मका तेरा सनम ।
वो  तेरी अगडाइयां  अब रैन तड़पाने लगीं ।।

सोचा  था  दोस्त  बनके  निभा देंगे  दोस्ती ।
पर  चाँद  सा  ये  हुस्न  इरादा  बदल गया ।।
आँखों  की  शरारत  भरी  मदहोशियाँ तेरी।
देखा जो लब पे जाम तो वादा बदल गया ।।

जब कैद खाने में मुसलसल उम्र ही गुजरी मेरी ।
तब  फिर  नयी आज़ादियाँ  अच्छी  नहीं  लगतीं ।

रुका है कब कहाँ किस से मुहब्बत का फ़साना ये ।
बंदिशों  पर  ये  लहरें  और  भी  बेख़ौफ़  होती हैं ।।


तुम्हारे जख्म तो भर जाएंगे इक दिन मेरे जानिब।
यहाँ  तो  मौत  हासिल है  तुम्हारी   बेरुखी  लेकर ।।
           

                   -

कैसे कह दूं

"----****कैसे कह दूं ?****---"

मैंने देखा है  आज तुझे
नज़रे चुराते
और फिर
बड़ी अदा के साथ
नजरें मिलाते ।
मेरे प्यार का असर
तुझे खीच लाया था तेरी दहलीज तक ।
वो सावन की हरियाली जैसे
कपडे ।
आँखों में गहरा आकर्षण ।
किसी बालकनी से चलते
हुए नयन के तीर ।
और फिर शर्मा कर
पलकें झुका लेना ।
अद्भुद सौंदर्य ।
मौन आमन्त्रण ।
प्रतीक्षा है तुम्हे मेरे पहल की
मैं जानता हूँ प्रिये ।
तुम्हारे एहसासों को पहचानता हूँ प्रिये ।
तुम्हारी खामोश चाहतें
मुझे रोज एक नई जिंदगी दे जातीं है ।
तुम्हारे हृदय से निकली तरंगे
अब पहुचने लगी है मेरे पास ।
किसी सम्मोहन की भांति
मेरे अवचेतन मन पर
तुम्हारा ही तो अधिकार है ।
फिर भी तुम भी मौन हो ।
और मैं भी मौन हूँ ।
नहीं खुल पाते मेरे शब्द ।
सिर्फ आत्मीय मिलन ही तो है
दोनों के देह पर कब्जा तो किसी और का है ।
कैसे कह दूं .........??????
मुझे .......तुमसे .....प्यार.... है ।

             नवीन

बुधवार, 19 अगस्त 2015

मनुहारों का गीत लिखूंगा

---***गीत***---

        
                      मनुहारों    का   गीत  लिखूंगा ।
                      मैं भी मन  का  मीत  लिखूंगा ।।

सौंदर्य   की   सहज  कल्पना ।
जीवन  की   अतृप्त   वासना ।
भावो   की   निर्द्वन्द  सर्जना ।
अंतर्मन   की   विरह   वेदना ।
निर्ममता   की   घोर  यंत्रणा ।
गयी  सिमट  सी मूल चेतना ।।

                     अंधकार   की  छाती   पर  मैं 
                     आशाओ का जीत  लिखूंगा ।।
                     मनुहारों   का  गीत  लिखूंगा ।
                     मैं भी  मन का  मीत  लिखूंगा ।।

घूँघट  पट   में  चाँद  सलोना।
महक उठा तन का हर कोना।
उर - स्पंदन   गुंजित   होना ।
भावुकता   का   रंग  पिरोना ।
धरती  प्यासी व्याकुल  होना ।
मेघों  का वह तपन  भिगोना ।

                      पायलिया की  छमछम मादक 
                      नूपुर   का  संगीत   लिखूंगा।।
                      मनुहारों   का  गीत  लिखूंगा ।
                      मैं भी मन  का  मीत लिखूंगा ।।

अंगड़ाई   में  मधुरिम  यौवन ।
तरुणाई सा  बहका  चितवन ।
इच्छाओं का  अद्भद  मधुवन।
प्रणय गन्ध विखराता उपवन।
अलक छटा लहराती बन ठन।
आलिंगन को व्यकुल तनमन ।

                सत रज तम में प्रीति  मिलाकर
                नव जीवन  का रीत  लिखूंगा ।।
                मनुहारों   का  गीत   लिखूंगा ।
               मैं भी मन  का  मीत  लिखूंगा ।।

जब   अलंकार   श्रृंगार   खिले।
तब आकर्षण  प्रतिकार  मिले ।
फिर  रात्रि  याचना  दीप  जले ।
आसक्ति   व्यथाओ  में  बदले । 
हिमखण्ड  हुए पिघले  पिघले ।
फिर ज्वार कहाँ उनसे सम्भले।

               प्रिय के  ऊष्ण  कपोलों  पर  मैं ,
               तृप्ति  मिलन का शीत लिखूंगा ।
               मनुहारों   का   गीत   लिखूंगा ।
               मैं  भी  अपना  मीत   लिखूंगा ।।

                              -नवीन मणि त्रिपाठी

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कुछ तो है

----***ग़ज़ल***--- 

फिर   तिरंगे  में  सुनामी,.... कुछ तो है ।
देश   में  पलता  हरामी,....  कुछ तो है ।।

तुम   हुए  आज़ाद   बस   कहते   रहो ।
तेरी फितरत में गुलामी,....कुछ  तो  है ।।

 फिर  धुआं  दिखने  लगा   संसद  में है।
उसकी आदत में निजामी,....कुछ तो है।।

 मज़हबी साया में देखो हुश्न बेपर्दा हुआ ।
हो गयीं वह भी  किमामी,.....कुछ  तो है ।।

जिसकी  सत्ता  थी  नहीं   उसको  कबूल।
 दे  रहा  है  वो  सलामी ,....कुछ  तो  है ।।

पुख्ता   सबूतो   पर  मिली  फाँसी  उसे ।
क्यों  हुई   ये   ऐहतरामी,....कुछ तो है ।।

बापू - माँ  का   शक्ल  दागी  हो  गया है।
मैली   चादर   रामनामी ,....कुछ   तो  है ।।

है  खबर   शायद   इलेक्शन  हांरने   की।
देखिये    बद  इंतजामी,.... कुछ  तो  है ।।

   -- नवीन मणि त्रिपाठी

क्या करूँ हुश्न तेरा गुनहगार है

----***ग़ज़ल***----

कुछ   तिलस्मी   लगा,  ये  तेरा  प्यार  है।
बेवफा      कैसा  तेरा,   ये   इकरार   है ।।

रोटियों   में  थी   खुशबू   तेरे  हाथ  की ।
चाहतो  की  भी  कैसी   ये  दरकार   है ।।

ख्वाब  में  रोज  आती  हो  जाने  वफ़ा।
ख्वाहिशों  की  तू  महंगी  सी बाजार है।।

लिख दिया तुमने खत में सबक है मगर ।
क्या   करूँ   हुश्न  तेरा   गुनहगार   है ।।

अब  वफाओं  के  ढूढो  न  मोती  यहां ।
ये  मुहब्बत  बनी   आज   व्यापार   है।।

उस  नदी से भी अब  वास्ता  क्या  रखूँ ।
जो  बहा ले  गयी  मुझको  मझधार  है।।

जिनके  मीठे  बचन   दिल   चुराते   रहे ।
अब  जुबाँ  पर वहां  खार  ही  खार  है ।।

उसकी  फितरत बदलती  रही  रात  दिन ।
दिल   लगाने  से   क्यूँ  वो  खबरदार  है।।

         -नवीन

मैं खत में और क्या लिखता

ग़ज़ल

मेरी  जागीर  ना तुम  हो  नहीं कुछ हक  मेरा चलता ।
हुई  थी आँख  मेरी नम मैं खत में और क्या लिखता ।। 

जुल्फ़ की  हर  अदाएं  भी बोल जाती है ये अक्सर  । 
पड़ेंगी    दौलते   ये   कम  मुझे  तू  बे  वफ़ा  लगता ।।

 मिल्कियत है उसे हासिल  कद्र से जो था न वाकिफ ।
जमी  बंजर    वही  बेदम  नहीं है  हल  जहाँ  चलता ।। 

मैं   बादल  हूँ   वही   जिसमें   बरसने  की  तमन्ना  है ।
नसीबों   में  नहीं   मौसम   यहाँ   सावन   बुरा  मिलता।।

मुकद्दर  में  मिलन   का  वक्त  जब  कर  दे मुकर्रर वो ।
है  बनती  ,शब् भी  है शबनम  नहीं  सूरज उगा करता ।।

ढल    रही    है   उम्र   तेरी   अब    ढलेंगे    मैकदे  भी।
सनम   तेरा  सितम  ता उम्र  तक  कैसे   यहाँ   चलता ।।

तुम्हारी  बज़्मे   महफ़िल   में  गजल  गाता  रहा   है  वो ।
तेरी  पायल  की  झनकारे  उसे  अब   सुर  नया  मिलता।।

      --नवीन मणि त्रिपाठी

ग़ज़ल

ग़ज़ल

यहां  मेरी  कलम  तुझ  पर  कभी तकरीर  न लिखती।
तेरी  तश्वीर   से   मिलती   हुई    तश्वीर  जो  मिलती ।।

नज़ीरे  हुस्न  हो  अव्वल  तेरी  नजरो  में  जलवा  है ।
करम  हो  जाए  गर  तेरा  कोई  तकदीर  है खिलती।।

मेरा सावन  है  तू आकर  बरस  जा अब  मेरे आँगन।
यहाँ  मुद्दत  से   तुझको  तश्नगी  की  पीर  न  दिखती ।।

खरीदारों  का  मज़मा  लग   रहा  तेरे  हरम  में  अब ।
सुना  तेरी   मुहब्बत  के  लिए   तहरीर  भी   बिकती  ।।

अमन   के  वास्ते   घूँघट  में  रहना   लाजिमी  तेरा ।
कयामत   हुश्न  बरपाता  यहॉं  शमसीर  है   चलती ।।

तुम्हारी  हर  तबस्सुम  पर  लिखे  लाखो  ने अफ़साने ।
फना  के  दरमियाँ  मुझको   तेरी  जंजीर  है  खिचती ।।

रोक  लो  इन  अदाओं को तेरी जुल्फें  भी  हैं  कातिल  ।
सनम  अब  मंदिरो  मस्जिद  की  है ताबीर  भी   ढहती  ।।

        -- नवीन मणि त्रिपाठी

ताबीर = पवित्रता    तश्नगी=प्यास
शमसीर = तलवार  तहरीर = एप्लीकेशन
तबस्सुम = मुस्कान 
दरमिया= दौरान
फना =कुर्बान

तेरी आँखे क्यूँ बताती ये मुहब्बत है खता

ग़ज़ल

धड़कने  मेरी हो तुम यह  सिर्फ तुमको है पता ।
तेरी  आँखे  क्यूँ  बताती  ये  मुहब्बत  है खता ।।

चाँद  से  चेहरे   पे   तेरे  इश्क  बेपर्दा  सनम ।
याद  तेरी  रात  भर मुझको बहुत जाती सता ।।

दस्तावेजो पर तेरी किस्मत  लिखा कोई और  है।
पर  मुहब्बत के लिए  है रब भी तुझको देखता।।

जुल्फ   लहराई   अदाएं  कातिलाना  सी  लगीं ।
जिंदगी हो या मेरी  कातिल  मुझे कुछ तो बता।।

तू   मुकद्दर   है  मेरी  जाने   वफ़ा  ये   जान  ले ।
चाहतें   कितनी   जवां  हैं   वक्त  देगा  ये  जता ।।

तेरी  खुशबू  रूबरू  होती  है अक्सर  ख्वाब में।
तुम  रात  की  रानी लगी महकी  हुई तेरी लता ।।

जुल्फ घुंघराली जो  बादल की तरह छाती गयी ।
जब नींद से आँखे खुली तुम दे गई मुझको धता ।।

                         --नवीन मणि त्रिपाठी

गज़ज़

अब  सियासत  दां  का  ऐसा   पैंतरा  है ।
उसको  दहशत  गर्द कहना  ही  बुरा  है ।।

कातिल  ए   फांसी   पे    मुर्दाबाद    हो ।
वोट  के  मजहब  से  आया  मशबरा  है ।।

बेकसूरों   के    दफ़न   पर    चुप   रहो ।
कुर्सियों   का   ये   पुराना  तफसरा  है ।।

कत्ल  कर आता  मजा  कासिम  को  है।
वह जुबां पर आज भी बिलकुल खरा है ।।

तू    वकालत   दुश्मनो  की   खूब  कर ।
जख्म   तेरे  मुल्क  का  अब भी हरा है।।

स्वर   तेरे  तकसीम  के  खारिज  हुए  हैं।
फिर   वतन  कहने   लगा  तू   बेसुरा  है ।।

है  खबर सबको यहां  फितरत  की अब।
वह ज़हर  से क्यों  बहुत ज़्यादा भरा है ।।

           - नवीन मणि त्रिपाठी

ग़ज़ल

जवानी वक्त था  जालिम  तरस  जाते  थे  दीवाने ।
चाँद कह कर जले है रात दिन तुझ पे वो परवाने ।।


उम्र   पूरी  गुजारी  सिर्फ   तेरी   चाहतें  लिखकर ।
जेहन  में आज भी जिन्दा मिले जितने मुझे ताने ।।


शबाबो  की अदा  फिर जुल्फ लहराना बनी चर्चा ।
बेवफा  से  मेरी  नज़रें  लगी  थी  इश्क  फरमाने ।।


तौहीने  मुहब्बत का  खुदा ने  हक  दिया  तुझको ।
कातिलाना तस्सवुर में  लिखी तुम रोज अफ़साने ।।


हमारे  खत  को  न  पढ़ना फाड़कर  यूं जला देना।
जख्म भूला कहाँ मुझको लगी जब जुल्म को ढाने ।।


वक्त फिसला तेरी मुट्ठी से फिसली आशनाई सब ।
नहीं आते है अब  बादल तेरे आँगन  को बरसाने ।।


सनम  जब हुश्न ढल जाने  की  बारी आ गयी तेरी ।
फेर  कर  मुँह  गए  सारे  जो  तेरे  बिन  थे  बेगाने ।।


         - नवीन मणि त्रिपाठी

दोहे

टूट  गयीं  सड़के  सभी  टूट  गया  विश्वास ।
बिजली  दुर्लभ  हो  गयी  टूटी सारी आस ।।

यह समाज का वाद है या फिर है अपवाद ।
नेता -जनता मध्य से लुप्त  हुआ  सम्वाद ।।

पिछडो  की माला जपे लेते  पिछड़ा वोट ।
एक  जाति यादव भली  बाकी में है खोट ।।

न्यायालय आदेश का पालन  करे न कोय ।
मापदण्ड  बस  एक है पद पर यादव होय।।

रक्षक  ही भक्षक  बने  लुटता  यहां प्रदेश ।
घूसखोर  नेता  मिले बदल बदल के भेष ।।

महिलाओं पर  क्रूरतम इनका सदा विचार ।
फ़ूला  फलता  राज  में इनके है व्यभिचार ।।

अवसरवादी  हो  गयी  उनकी अब पहचान।
रोज टूटकर गिर रहा मुस्लिम का अभिमान।।

गुंडों  की  भरमार   है  चौराहों   पर  आज ।
इज्जत  राखें  राम जी  उनका आया राज ।।

                   -नवीन