तीखी कलम से

शनिवार, 30 जनवरी 2016

ग़ज़ल


मैं  इबादत   हसरतों   के  नाम   ही  करता  रहा ।
वक्त  से   पहले  कोई  सूरज  यहां  ढलता  रहा ।।

जिंदगी  के  हर अंधेरो  से  मैं  बाजी  जीत  कर ।
बन मुहब्बत  का दिया मैं  रात भर  जलता रहा ।।

रात   की   तन्हाइयाँ   ले  कर   गयीं  यादें   तेरी ।
फिर  सहर आई  तो  मैं यूँ  हाथ  को  मलता  रहा।।

जब  से   देखा  रिन्द  ने  साकी   तेरे अंदाज  को ।
मैकदे  में   जाम  का यह  सिलसिला चलता रहा ।।
                
रात  दिन  सजदा  मेरा  होता  रहा  उस  हुश्न  को ।
जो किसी नागन की माफिक उम्र भर डंसता रहा ।।

                           **** नवीन

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2016) को "माँ का हृदय उदार" (चर्चा अंक-2238) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 31 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! 

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी रचना ।

    आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
    ब्लॉग"दीप"

    यहाँ भी पधारें-
    तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
    "कैसा तेरा प्यार था"

    जवाब देंहटाएं