तीखी कलम से

शुक्रवार, 13 मई 2016

ग़ज़ल

मिजाज  ए इश्क़  को ये  चाँद जब दीदार  करता है ।
निगाहे   हुस्न   पर  परदा  कोई  सौ बार  करता है ।।

दुपट्टा  यूं  सरक  जाना  नही   था  इत्तफाकन यह ।
खबर कुछ तो मुकम्मल थी वो हमसे प्यार करता है।।

बरस जाने की ख्वाहिश अब्र  रखता  है तेरे दर  पे ।
ये बादल दिल से अक्सर गुफ्तगूं  दो चार करता है ।।

तू  आके  देख  महफ़िल  में  यहां तेरी  जरूरत  है ।
मेरे  महबूब  तुझ पर भी  कोई  ऐतबार  करता है ।।

तेरे  काजल  से शब्  तो  हो  गयी  बेइंतहा  काली ।
तुम्हारा   जुर्म  कब किस्सा  सही इकरार करता है ।।

लुटा  देने  की हसरत अब अदाओं पर तेरे  साकी ।
मैकदे  में  कोई  मयकस बहुत  इफ्तार  करता है ।।

तेरी पायल की घुंघरू से मिली जब आहटें उसको ।
हौसला  फिर  जवां  होकर  उसे  बीमार करता है ।।

हमारी  बेबसी  को   सिर्फ  मेरा  दिल  समझता  है ।
अजब चेहरा तेरा दिल  से  बहुत  तकरार करता है ।।

वस्ल की दास्ताँ तो सिर्फ दिल के  हर्फ़  में  लिक्खा ।
यकीनन  यह  नयी  चर्चा  नया  अखबार  करता है।।

किताबों की तरह  पढता  तुझे दिनरात  ऐ जालिम ।
परिंदा  सुर्ख  लब पर  क्यूँ बहुत  इजहार  करता है ।।

       नवीन मणि त्रिपाठी

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 5 जून 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं